एक बेबसी

10:23:00 PM

नफरत भरी नज़रों से यु न देख मुझे
मैं जनता हूँ,
प्यार भरी नज़रों से तू देख ही नही सकती.
बस एक एहसान कर
तू मुझे देखना ही छोड़ दे
और मैं झूठे ख्वाब देखना छोड़ दूंगा
समेट लूंगा खुद को मैं
और बेवजह पीना छोड़ दूंगा
शायद जीना सीख लूंगा!

आज मैं खड़ा था, तू भी कड़ी थी
मैं ठहरा हुआ था,
लेकिन तू हमेशा की तरह चंचल नाजुक सी खिलाती काली थी.
पर फिर भी कुछ कमी थी
शायद वो तेरी हंसी थी
शायद वो मेरी बेबसी थी!

मैं बँधा था एक रिस्ते के पीछे
वो सिनियोरिटी जुनिओरिटी थी
पर उससे ज्यादा कही तेरी न चाहगी थी
तू भी टूटी हुई है..और मैं भी टुटा हुआ हु
पर फिर भी कुछ कमी थी
शायद वो तेरी हंसी थी
शायद वो मेरी बेबसी थी!

पर फिर तू चली गयी
नैनो से ओझल होक दूर कही अपने आशियाने में
और मैं लौट आया अपने ज़माने में
फिर सोचा कुछ लिख दू आज
और लिख दिया मैंने अपना सार इसी कहानी में
इसी जिंदगानी में!


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